हमें इस बात का गर्व है कि हम बहुदेव पूजक हैं। वास्तविकता तो यह है कि हमारे देवता तैतीस करोड़ ही नहीं अगणित हैं। सामान्य रूप से उन्हें तैतीस प्रकारों में विभाजित किया गया है।

सृष्टि की प्रत्येक दिव्यता के अधिष्ठाता को हम एक देवता मानते हैं। अग्नि, जल वायु, भूमि और पर्वतों के अधिष्ठाता ही केवल देवता नहीं हैं, बल्कि मनुष्य द्वारा जो नित्य नवीन आविष्कार किया जाता है और उसके पीछे भी जो दिव्यता होती है वह देवता है, इसलिए हिन्दू के लिए नव आविष्कृत यंत्र भी देवता हैं।
वह अपनी गाड़ी का भी पूजा करता है और यंत्र का भी पूजा करता है। वह अपने जीवन से जुड़े हर उस वस्तु की पूजा करता है, जो उसके लिए एनकेन प्रकारेण उपयोगी है।
ऐसी कोई भी वस्तु नहीं है जिसकी दिव्यता के अधिष्ठाता की खोज कर हिन्दू उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए उसकी पूजा न करता हो, लेकिन उस दिव्यता का मूलस्रोत एक अद्वितीय परमात्मा ही है
सृष्टि की दिव्यता की खोज और उसके अधिष्ठाता के प्रति कृतज्ञता यही तो हिन्दुत्व है। हिन्दू यानी एक कृतज्ञ मानव, यही हमारी सांस्कृतिक विशेषता है।
(लेखिका धार्मिक मामलो की जानकार एवं राष्ट्रीय विचारक है )