रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लिया फिर धनुष क्यों नहीं उठा पाया और श्री राम ने कैसे धनुष तोड़ दिया ?

रावण ने कैलाश पर्वत को उठा लिया फिर धनुष क्यों नहीं उठा पाया और श्री राम ने कैसे धनुष तोड़ दिया ?

मंजू लता शुक्ला(नव्या)

 ऐसा था धनुष : भगवान शिव का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था। शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे।

ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो।यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था।इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था।देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया था।

  देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज को दे दिया।राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे।शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था।उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था, लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।

 श्रीराम चरितमानस में एक चौपाई आती है:-

 “उठहु राम भंजहु भव चापा।

मेटहु तात जनक परितापाI”

 भावार्थ- गुरु विश्वामित्र जनकजी को बेहद परेशान और निराश देखकर श्री रामजी से कहते हैं कि हे पुत्र श्रीराम उठो और “भव सागर रुपी” इस धनुष को तोड़कर, जनक की पीड़ा का हरण करो।”

 इस चौपाई में एक शब्द है भव चापा अर्थात इस धनुष को उठाने के लिए शक्ति की नहीं बल्कि प्रेम और निरंकार की जरूरत थी।यह मायावी और दिव्य धनुष था।उसे उठाने के लिए दैवीय गुणों की जरूरत थी।कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था।

 रावण एक अहंकारी मनुष्‍य था। वह कैलाश पर्वत तो उठा सकता था लेकिन धनुष नहीं।धनुष को तो वह हिला भी नहीं सकता था। वन धनुष के पास एक अहंकारी और शक्तिशाली व्यक्ति का घमंड लेकर गया था।रावण जितनी उस धनुष में शक्ति लगाता वह धनुष और भारी हो जाता था। वहां सभी राजा अपनी शक्ति और अहंकार से हारे थे।

 जब प्रभु श्रीराम की बारी आई तो वे समझते थे कि यह कोई साधारण धनुष नहीं बल्की भगवान शिव का धनुष है। इसीलिए सबसे पहले उन्हों धनुष को प्रणाम किया।फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा की और उसे संपूर्ण सम्मान दिया।प्रभु श्रीराम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन स्वत: ही तिरोहित हो गया और उन्होंने उस धनुष को प्रेम पूर्वक उठाया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे झुकाते ही धनुष खुद ब खुद टूट गया।

  कहते हैं कि जिस प्रकार सीता शिवजी का ध्यान कर सहज भाव बिना बल लगाए धनुष उठा लेती थी,उसी प्रकार श्रीराम ने भी धनुष को उठाने का प्रयास किया और सफल हुए..!!

रावण कैलाश को आसानी से उठा लिया था तो अंगद का पैर क्यों नहीं उठा पाया?

अंगद के बल, कौशल, चतुराई और बुद्धिमत्ता के कारण ही उन्हें दूत बना कर भेज गया था। वे जानते थे कि जो रावण कैलाश पर्वत भी उठा सकता है वह उनके पाँव को भी उखाड़ फेंक सकता है। इसीलिए उन्होंने बड़ी चतुराई से ऐसी स्थिति निर्मित की, कि रावण लज्जित हो कर, बिना उनके पाँव को डिगाये वापस अपने सिंहासन पर जा बैठा।

जब अपने सभी सभासदों और योद्धाओं द्वारा अंगद के पैर को विचलित करने में असफल होता देख कर रावण ने स्वयं ही प्रयास करने का निश्चय किया।

जब रावण अंगद के पैर के तरफ बढ़ा, तब उस समय अंगद ने उससे व्यंगात्मक रूप में कहा कि यदि पैरो में गिरना ही है, तो मेरे नहीं, प्रभु श्रीराम के चरणों मे गिरो। मेरे चरणों मे गिरने से तुम्हारा उद्धार नहीं होने वाला।।

ऐसा सुनते ही रावण लज्जित हो कर, बिना उनके पाँव को डिगाये वापस अपने सिंहासन पर जा बैठा।

(लेखिका धार्मिक मामलो की जानकार एवं राष्ट्रिय विचारक है)