राहुल गांधी की सजा भुनाने की कोशिश, राजनीति को प्राथमिकता देने का प्रयास

मीनाक्षी वर्मा

लोकसभा की सदस्यता गंवाने के बाद पहली बार मीडिया को संबोधित कर रहे राहुल गांधी ने जिस तरह यह कहा कि कुछ भी हो जाए, मैं अदाणी मामले को लेकर प्रश्न पूछता रहूंगा, उससे यह स्पष्ट हो गया कि मानहानि मामले में अपनी सजा को लेकर वह कानूनी लड़ाई से अधिक राजनीतिक लड़ाई लड़ने को प्राथमिकता देने जा रहे हैं।

इसका पता कांग्रेस की ओर से देश भर में धरना-प्रदर्शन करने की तैयारी से भी चलता है। यह भी उल्लेखनीय है कि अपने प्रवक्ता पवन खेड़ा के मामले में जो कांग्रेस आनन-फानन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई थी, वह राहुल गांधी के मामले में ऐसी कोई तत्परता नहीं दिखा रही है। इसका अर्थ है कि राहुल गांधी की सजा को राजनीतिक रूप से भुनाने की तैयारी कर ली गई है।

राहुल गांधी कुछ भी कहें सच तो यही है कि मानहानि के मामले में सजा उनके उस बयान के लिए मिली है जो उन्होंने चार वर्ष पहले मोदी समाज को लेकर दिया था। क्या राहुल गांधी अपनी सजा के खिलाफ अपील करने के बजाय जेल जाना पसंद करेंगे!

इसी के तहत राहुल गांधी और कांग्रेस की ओर से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि उन्हें सजा इसलिए सुनाई गई और उनकी सदस्यता इसलिए चली गई, क्योंकि वह अदाणी मामले पर लगातार सवाल खड़े कर रहे थे। किसी मामले को अलग रूप देकर उसे राजनीतिक रूप से भुनाना कोई नई-अनोखी बात नहीं, लेकिन ऐसी कोशिश तभी सफल होती है, जब जनता भी उस विमर्श से जुड़ती है, जो नेता या दल विशेष की ओर से गढ़ा जा रहा होता है। यह समय बताएगा कि जनता इस धारणा से सहमत होती है या नहीं कि राहुल गांधी को अदालत से सजा इसलिए मिली, क्योंकि वह अदाणी मामले में लगातार बोल रहे थे।

राहुल गांधी और उनके सहयोगी कुछ भी कहें, सच तो यही है कि मानहानि के मामले में सजा उनके उस बयान के लिए मिली है, जो उन्होंने चार वर्ष पहले मोदी समाज को लेकर दिया था। क्या इस सच से मुंह मोड़ने के लिए राहुल गांधी अपनी सजा के खिलाफ अपील करने के बजाय जेल जाना पसंद करेंगे, ताकि उन्हें लोगों को सहानुभूति मिल सके? यह वह प्रश्न है जिसका उत्तर फिलहाल उपलब्ध नहीं है, लेकिन कांग्रेस राहुल की सजा के मामले को बहुत अधिक नहीं खींच सकती, क्योंकि एक तो भाजपा अपने स्तर पर यह समझाने की हर संभव कोशिश करेगी कि उनकी सदस्यता किन कारणों से गई और दूसरे, यह कोई ऐसा मामला नहीं जो आम जनता के सरोकार से जुड़ा हो।

राजनीति उन्हीं मुद्दों पर की जा सकती है, जो जनता को प्रभावित करते हों। कांग्रेस को यह विस्मृत नहीं करना चाहिए कि पिछले चुनाव के अवसर पर उसने और विशेष रूप से राहुल गांधी ने राफेल सौदे को एक घोटाला करार देकर उसे राजनीतिक रूप से भुनाने के हर संभव जतन किए थे, लेकिन यह किसी से छिपी नहीं कि उसके नतीजे क्या रहे? यदि जनमानस किसी मुद्दे को अहमियत नहीं देता तो फिर राजनीतिक दल कुछ भी कर लें, उसका व्यापक असर नहीं पड़ता।

(लेखिका सर्चिंग आईज हिंदी मासिक की जिला संवाददाता एवं राजनितिक विश्लेषक है)