युद्ध की एक बहुत ही पुरानी एवं कारगर रणनीति है कि दुश्मनों को हमेशा तो हमेशा हतोत्साहित एवं असंतुष्ट रखो…

जिससे कि दुश्मनों का मोरल डाउन रहेगा और वो कभी आपसे लड़ने अथवा जीतने का कभी नहीं सोचेगा.
युद्ध का यह सिद्धांत इतना पुराना एवं प्रचलित है कि… इसे हम सबने अपने स्कूलों में “मन के हारे हार है, मन के जीत” रूप में पढ़े हुए हैं.
अब ये “मन के हारे हार” कैसे पैदा किया जाता है… वो एक उदाहरण से समझने की जरूरत है.
मान लो कि….UPSC का एक एग्जाम ही हुआ और उसके रिजल्ट आये.
तो, रिजल्ट में कोई न कोई तो पास होगा ही.
अब इसमें अगर कोई कटेशर फर्स्ट आ गया तो बोलना है कि….. देखा ??
मोइया को उनका विश्वास जीतना है और इस हेतु उन्होंने उनके लिए ढेरों फ्री कोचिंग चला रखे हैं.
इसीलिए तो, वे अब फर्स्ट आने लगे हैं /इतनी संख्या में आने लगे हैं.
असल में ऐसा करके मोइया… देश का कब्जा उन कटेशरो के हाथ में देने के चक्कर में है.
लेकिन, अगर अधिकांश सीट पर हम हिनू ही विजेता होते हैं तो फिर इसे हिनुओं की जीत नहीं बताई जाएगी बल्कि ये बताया जाएगा कि इतने बाभन सफल हुए हैं, इतने राजपूत या वैश्य सफल हुए हैं.
सिर्फ इतना भी रह जाये तो गनीमत है.
क्योंकि, बात इसके आगे पहुंच जानी है.
अब इसमें देखा जाता है कि…. ज्यादा सवर्ण सफल हुए हैं या आरक्षण वाले ???
फिर… हालात के अनुसार समझाया जाएगा कि…. किसी को कितना भी आरक्षण दे लो लेकिन टैलेंट तो टैलेंट होता है…
टैलेंट को थोड़े न दबा पाओगे.
लेकिन, अगर आरक्षण वालों ने ज्यादा सीट निकाले हैं तो फिर कहा जाना है कि….
देख लिए ??
मोइया ने सबको इतना आरक्षण दे रखा है कि अब सिर्फ वही लोग सफल हो रहे हैं और अब हमारे टैलेंट की कोई कद्र ही नहीं रह गई है.
कहने का मतलब कि…. चाहे परिस्थिति कुछ भी रहे….
किसी भी तरह अपने हिनू समुदाय को या तो विभाजित रखना है या फिर उन्हें हतोत्साहित करना है.
मैं नहीं जानता कि… ऐसे लेखों की शुरुआत होती कहाँ से है ?
लेकिन, जितने भी लोग ऐसे पोस्ट को लाइक या फारवर्ड करते हैं..
उन्हें एक बार स्वयं में इस बात का आत्ममंथन करना चाहिए कि …. क्या सच में अब भी वे वही बोलेंगे कि जाति-व्यवस्था और जातियों के बीच विभाजन मैकाले ने किया है ?
या फिर, वे ऐसी पोस्ट करके खुद कर कर रहे हैं ???
मैकाले ने जो किया सो किया और मैकाले के मरे जमाना हो गया.
लेकिन, आज हम और आप क्या कर रहे हैं ???
क्या ऐसी गिनती कर हम और आप मैकाले के षड्यंत्र को ही आगे नहीं बढ़ा रहे हैं…
जिसमें चाहे कोई पर्व त्योहार हो, सरकार में मंत्रालय का विभाजन हो या फिर एक UPSC एग्जाम का रिजल्ट ही क्यों न हो ?
जिंदगी और समाज के हर मोर्चे पर हम जातिगत विभाजन को पाटने की जगह उसे और अधिक उभारने में ज्यादा खुशी अनुभव करते हैं…!
या फिर कहीं ऐसा तो नहीं… ऐसे पोस्ट की शुरुआत वहाँ से होती है जो ये चाहते ही नहीं हैं कि…
देश का हिनू समुदाय कभी अपनी उपलब्धि पर गर्व अनुभव कर सके.. और, वो हमेशा हतोउत्साहित ही रहे.
इसीलिए, एक समुदाय की उपलब्धि को जातियों में विभाजित कर उसे न्यूट्रल कर दिया जाता है ताकि दूसरी जाति के लोग सफल अभ्यर्थी को हिनू मानकर उनपर गर्व न करने लग जाएं…
और, किसी मलेच्छ के सफल होने पर उसे ज्यादा से ज्यादा उभार कर हिनुओं में असंतुष्टि की भावना भरी जाती है कि…. उनके नेतृत्व के गलत फैसलों के कारण ऐसा हो रहा है…
एवं, अगर ये नेतृत्व आगे भी बना रहा तो हिनुओं की बर्बादी तय है.
हद है यार…
मैं ये जानता हूँ कि अपने लोगों के इधर उधर बिदकते रहने के कारण हम लोग नैरेटिव गढ़ने में नहीं हो पाते हैं.
लेकिन, क्या हमलोग इतने ज्यादा कमअक्ल हैं कि दुश्मनों के नैरेटिव तो समझ तक नहीं पाते हैं कि असल में ऐसी पोस्टों का अंतिम उद्देश्य क्या है ???
क्या… अपने IAS तक को अपनी जाति और पराई जाति के चश्मे से देखकर हम भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना देख रहे हैं ???
इसीलिए, मन में एक बहुत ही सामान्य सा प्रश्न उठता है कि जातियों में इस कदर बंटे हिन्दू क्या वास्तव में अभी एक हिन्दू राष्ट्र के लिए तैयार है ???
या फिर…. वो सिर्फ वो अपने सामने दुश्मनों को देखकर ही एकजुटता का नारा लगाते रहता है ????
खैर, मुझे तो इस बात का गर्व है कि… इस बार के देश के टॉप एग्जाम में अपने बहुत धर्म भाई-बहन सफल हुए हैं
(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता एवं राष्ट्रीय मामलो की जानकार है )