


नए संसद भवन के निर्माण में देश की गौरवशाली विरासत का खास ख्याल रखा गया है। इसके अंदर अखंड भारत का मानचित्र के साथ आंबेडकर, सरदार पटेल और चाणक्य के चित्र कई जगह उकेरे गए हैं। लोकसभा की थीम राष्ट्रीय पक्षी मोर तो राज्यसभा की थीम राष्ट्रीय फूल कमल पर आधारित है। प्रांगण में राष्ट्रीय वृक्ष बरगद भी है। नई और पुरानी संसद के बीच महात्मा गांधी की 16 फुट ऊंची कांस्य की प्रतिमा स्थापित हैं।
भवन में प्रवेश करते ही
तीन गलियारे हैं जिनमें संगीत गलियारे में नृत्य, गीत और संगीत को दर्शाया गया है…
-स्थापत्य गलियारे में देश के स्थापत्य की विरासत नजर आती है। शिल्प गलियारे में अलग-अलग राज्यों के हस्तशिल्प की झांकी दिखती है
-नए संसद भवन के शीर्ष पर सारनाथ अशोक स्तंभ के शेर स्थापित हैं।
संसद भवन खास बनाती विशेषताएं
- 5000 कलाकृतियां लगाई गई हैं नए संसद भवन में
- नई संसद में चित्र, पत्थर की मूर्तियां, पच्चीकारी और धातु की मूर्तियां शामिल
- पुरानी संसद को बनने में छह साल लगे थे जबकि नई संसद तीन साल से कम समय में बनकर हो गई तैयार
- लोकसभा की थीम राष्ट्रीय पक्षी मोर तो राज्यसभा की थीम राष्ट्रीय फूल कमल पर आधारित
- गलियारों में संगीत, स्थापत्य और शिल्प के दर्शन
- संयुक्त बैठक में एकसाथ बैठ सकेंगे 1,272 सांसद
संविधान भवन बेहद खास
नई संसद में संविधान हॉल सबसे अहम है। यह नई इमारत के बीचोंबीच बना है। इसके ऊपर अशोक स्तंभ स्थापित है। यहां संविधान की मूल प्रति रखी जाएगी। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सुभाष चंद्र बोस जैसे कई महान स्वतंत्रता सेनानियों की तस्वीरें भी लगाई गई हैं।
900 कारीगरों ने की कालीन की बुनाई
नए संसद भवन के लिए कालीन बनाने में उत्तर प्रदेश के भदोही व मिर्जापुर जिलों के करीब 900 कारीगरों को लगाया गया था, जिन्होंने लगभग 10 लाख घंटे में 35,000 वर्ग फुट क्षेत्र में फैले दोनों सदनों के लिए कालीन की बुनाई की। ये कालीन संसद भवन में लोकसभा और राज्यसभा के फर्श की शोभा बढ़ा रहे हैं। लोकसभा और राज्यसभा के कालीनों में क्रमशः राष्ट्रीय पक्षी मोर और राष्ट्रीय पुष्प कमल के उत्कृष्ट रूपों को दर्शाया गया है। नए संसद भवन के लिए कालीन तैयार करने का जिम्मा 100 साल से अधिक पुरानी कंपनी ‘ओबीटी कार्पेट’ को दिया गया था।
बुनकरों ने लोकसभा तथा राज्यसभा के लिए 150 से ज्यादा कालीन तैयार किए और फिर उनकी वास्तुकला के मुताबिक अर्ध-वृत्त के आकार में सिलाई की गई। उन्होंने कहा, बुनकरों को 17,500 वर्ग फुट में फैले हर सदन के लिए कालीन की बुनाई करनी थी। – रूद्र चटर्जी, अध्यक्ष, ओबीटी कार्पेट
-डिजाइन टीम के लिए यह एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण काम था, क्योंकि उन्हें कालीन को अलग-अलग टुकड़ों में सावधानी से तैयार कर जोड़ना था।
-कालीन को जोड़ते समय यह भी सुनिश्चित करना था कि बुनकरों की कलात्मकता बनी रहे और ज्यादा से ज्यादा लोगों की आवाजाही के बावजूद कालीन खराब न हो।
60 करोड़ से अधिक गांठें बुनी गईं
कालीन बनाने के लिए प्रति वर्ग इंच पर 120 गांठों को बुना गया। इस तरह कुल 60 करोड़ से अधिक गांठें बुनी गईं। कोरोना महामारी के बीच 2020 में यह काम शुरू किया गया था। सितंबर 2021 तक शुरू हुई बुनाई की प्रक्रिया मई 2022 तक समाप्त हो गई थी, और नवंबर 2022 में इसे बिछाए जाने का काम शुरू हुआ।